Facts to know about Jagannath Temple Jagannathpuri
श्री जगन्नाथ मन्दिर श्रीकृष्ण के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। यह मंदिर उड़ीसा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है।
यह मन्दिर चारों धामों में से एक माना जाता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देवता हैं।
मुख्य मंदिर के शिखर पर नीलचक्र विभूषित है। यह अष्टधातु से निर्मित चक्र बहुत पवित्र माना जाता है। आप जिसभी दिशा से देखते हैं, यह चक्र उसी रूप में वापस दिखता है।
मंदिर के शिखर के ऊपर लगा ध्वज प्रतिदिन एक पुजारी द्वारा बदला जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि एक दिन भी ध्वज ना बदला जाए, तो मंदिर अगले 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।
सबसे विचित्र बात यह है की यह ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है ।
मन्दिर के निर्माण कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने आरंभ कराया था तथा इस मंदिर का जीर्णोद्धार उड़ीसा के शासक अनंग भीमदेव ने करवाया था।
मंदिर का क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट में फैला हुआ है। मंदिर की स्थापत्यकला और शिल्पकला कलिंग शैली में है। यह मंदिर भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है।
जगन्नाथ मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में प्रसिद्ध है।
इस रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं ।
मंदिर का महाप्रसाद सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर चूल्हे पर पकाया जाता है। हैरानी बात यह है कि सबसे ऊपर वाला बर्तन सबसे पहले पकता है और बाकी सब भी इसी क्रम में चलते है!
मंदिर में बनाया गया महाप्रसाद कभी भी बर्बाद नही होता और ना ही कभी कम पड़ता है।
एक विचित्र बात यह है की दिन के किसी भी समय, किसी भी दिशा से जगन्नाथ मंदिर की कोई भी छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती है।
मंदिर की एक खास बात यह भी है की जब आप सिंहद्वार से मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं, तो समुद्र की लहरों की आवाज पूरी तरह से गायब हो जाती है और जब आप मंदिर से बाहर निकलते हैं तो आवाज वापस आ जाती है।
इस मन्दिर की रथ यात्रा बेहद प्रसिद्ध है। इसमें श्री जगन्नाथ , उनके बड़े ई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।